हम सब ने बोली है कभी हिंदी कभी उर्दू।अहम से नही हम से निकली है कभी हिंदी कभी उर्दू।सियासत -ए- दांव पर बिखरी पड़ी है हर तरफ लाशें,शाह-ए-नज़र में इंसान कोई नहीगिनती में है कोई हिंदी कोई उर्दू।मेरे मज़हब ने तो जीने का सलीका बताया था मुझकोपर देखो जरा मज़हब की आंच में कैसे जलते हैंकभी हिंदी कभी उर्दू।जहां नुक्ते के बदल से खुदा हो जाते हैं ज़ुदाजहाँ मौत देकर मांगी जाती हो ज़िन्दगी की दुआऐसी शिकाफत-ए-शिकालत में बेबस है कभी हिंदी कभी उर्दू।इस सरज़मीं पे ज़ुबान-ए-मोहब्बत सहीया दास्तान-ए-सितम सही मेरे रहनुमा?याद रख तेरे बाद के नस्ल की कहानी तेरे आखिर से ही शुरू होगी।।
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति आपकी विचारशीलता बेहतरीन है !!
thank you very much.. I want motivation frm d people like you…
bahut badhiya kataaksh…………..
thank you…… 🙂
बहुत ही सुंदर……… बहुत अच्छी विचारधारा……….
शुक्रिया काजल जी….
bahut badiya rakesh ji…..
शुक्रिया मानी सर….. 🙂