किसी शायर ने अंतिम यात्राका क्या खूब वर्णन किया है…..था मैं नींद में और.मुझे इतनासजाया जा रहा था….बड़े प्यार सेमुझे नहलाया जा रहाथा….ना जानेथा वो कौन सा अजब खेलमेरे घरमें….बच्चो की तरह मुझेकंधे पर उठाया जा रहाथा….था पास मेरा हर अपनाउसवक़्त….फिर भी मैं हर किसी केमनसेभुलाया जा रहा था…जो कभी देखतेभी न थे मोहब्बत कीनिगाहोंसे….उनके दिल से भी प्यार मुझपरलुटाया जा रहा था…मालूम नही क्योंहैरान था हर कोई मुझेसोतेहुएदेख कर….जोर-जोर से रोकर मुझेजगाया जा रहा था…काँप उठीमेरी रूह वो मंज़रदेखकर…..जहाँ मुझे हमेशा केलिएसुलाया जा रहा था…..मोहब्बत कीइन्तहा थी जिन दिलों मेंमेरेलिए…..उन्हीं दिलों के हाथों,आज मैं जलाया जा रहा था!!!
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Bahut sundar…..
बहुत खूबसूरत ………………………..!!
Sunder………..
आलोक जी रचना तो बहुत ही सुंदर है……..
पर हिन्दी साहित्य पर स्वलिखित रचना पढने का आनंद ही कुछ और है…….. ये रचना whatsapp me कई बार
पढ़ा जा चुका है।