मेरे गीतों की मृदु बोलीपतझर में कोयल-सी होतीडाल डाल पर वाणी तेरीइन गीतों से महकी होती । हर साँसों का लेखा-जोखातूफानों में मिट मिट जाताजन्म-मरण का लेना-देनाकोरा कागज-सा बन जाता तब अक्षर से बातें करतीपीड़ा मेरी हँसती गातीमेरे गीतों की मृदु बोलीपतझर में कोयल-सी होती । सूने पथ पर थकित बिचारेप्यासे पनघट जब पा जातेप्यासे जग के प्यासे प्राणीइन गीतों को गाते जाते तुझे खोजती तेरी वाणीइन गीतों की अपनी होतीमेरे गीतों की मृदु बोलीपतझर में कोयल-सी होती । निर्जल बदली, निष्ठुर बदली,बूँद बूँद को तरसा करतीआँसू की अर्थी-सी पलकेंसबका दिल जब दहला जााती तब करने श्रंगार सृष्टि कावर्षा इन गीतों की होतीमेरे गीतों की मृदु बोलीपतझर में कोयल-सी होती। कंपित प्राण दीप के होतेधुँआ धुँआ-सी बाती होतीऔर साँस की कुटिया जरजरभीतर भीतर रोती होती तुझे जगाने रात अमावसीगीतों में पूनम-सी होतीमेरे गीतों की मृदु बोलीपतझर में कोयल-सी होती । सुरबाला-सी प्यारी साँसेंखाली प्याली भरने आतीपर माटी इस तन की प्यारीटूटी प्याली-सी बन जाती चरएाामृत तब तेरा पानेइन गीतों की प्याली होतीमेरे गीतों की मृदु बोलीपतझर में कोयल-सी होती । ….भूपेन्द्र कुमार दवे00000
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laajwaab………….
Ati sundar……………………….!
आपके गीतों की मृदु बोली बहुत ही सुंदर है……… दवे जी