हमने रुकती मिटती साँसों का अंत देखा है हमने रुकती मिटती साँसों का अंत देखा हैअपनी ही जिन्दगी का अंतिम वसंत देखा है। हमने झुर्रियों में छिप बढ़ती उम्र निहारी हैहमने शून्य में विलीन होता अनंत देखा है। दरके प्याले में थिरकता इक मधुकण देखा हैमयखाने के अंदर बैठा इक संत देखा है। हमने बगिया में गुनगुनाता पतझर देखा हैवसंत ऋतु में भी कुनमुनाता वसंत देखा है। कहती है आँधियों से जूझती दिये की बातीहमने भी रोशनी से दमकता दिगंत देखा है। हमने रुकती मिटती साँसों का अंत देखा हैअपनी ही जिन्दगी का अंतिम वसंत देखा है।……..भूपेन्द्र कुमार दवे 00000
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sundar…………….
nice write……………
खूबसूरत भाव सम्प्रेषण ………..!!
अति सुंदर………. बहुत बढ़िया रचना दवे जी….