माँ माँ ! तुम क्यों मेरी कविता में रह रहकर आती हो।क्यूँ अपने आँसू की गंगा इसमें भर जाती हो। मैं तो अपनी कलम लिये यूँ ही सोचा करता हूँपर कागज पर तुम क्यूँकर माँ अच्छा लिख जाती हो। मैं तो जगता रहा हूँ रातभर सो भी न सका हूँपर जाने कब तुम भावों में रस कण भर जाती हो। माँ ! तुम क्यों मेरी कविता में रह रहकर आती हो। सुबह कुनमुनाती किरणें अपनी झोली में ले, माँतुम ही आकर थपकियाँ दे मुझको सजग बनाती हो। माँ, मेरी कविता तो तेरे आँगन की तुलसी ही हैफिर क्यूँ इसको सिंचित करने आँखें भर लाती हो। माँ ! तुम क्यों मेरी कविता में रह रहकर आती हो। मैं खो जाऊँ अपने सपनों या तेरी यादों मेंपर तुम कविता आँचल में ला सब सुध भर जाती हो। माँ, तुम ही छूकर पढ़ लो कविता की पंखुड़ियों कोजो खुश्बू है इसमें वह तुम ही तो भर जाती हो। माँ ! तुम क्यों मेरी कविता में रह रहकर आती हो। मैं हूँ बस कोरा कागज कविता करना क्या जानूँइस कागज पर तो तुम ही माँ, कुछ कुछ लिख जाती हो। मैं शब्द चुनूँ या फिर शब्द-चयन में कँप कँप जाऊँपर तुम स्नेहिल अर्थ सभी में आकर भर जाती हो। माँ ! तुम क्यों मेरी कविता में रह रहकर आती हो। देने अतुल आशीष तुम ही कविता बन आती होमेरे हृदय पटल पर फिर तुम कुछ कुछ लिख जाती हो। हर शब्द-परत में तुम ही स्नेह प्यार भर जाती होअंकित कर चुम्बन प्यारा-सा कविता रच जाती हो। माँ ! तुम क्यों मेरी कविता में रह रहकर आती हो। अब समझा माँ, तुम क्यों मेरी कविता में आती होक्यूँ ममता का पराग इसमें भरने तुम आती हो। माँ, तुम आती हो तो मेरी कविता रच जाती हैमेरे आँसू कण में तुम गंगा जल भर जाती हो। अब समझा माँ, तुम क्यों मेरी कविता में आती हो। …..भूपेन्द्र कुमार दवे 00000
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bahut khoobsoorat……….
Many thanks for the good words for my kavita. Thanks.
urjaa jahan se bhi mile vo ishwar kaa asshirvaad hi hai. aapke maatr prem ko naman.
उर्जा आप से, आशीर्वाद मां से और कृपा ईश्वर से मिलती है। मैं इसी त्रिवेणी पर खड़ा खुद को पाता हूं। धन्यवाद।
माँ के लिए जो भी कहा जाये जितना भी गुणगान किया जाये हमेशा काम ही पड़ता है …………..अति सुंदर
बहुत ही सुंदर…….. माता प्रेम की भावना से ओतप्रोत रचना