विषय ~ मेले की एक शरकसदेखने गया मैं मेला अपनी भतीजियों के साथ, ले गई मेरी भतीजी एक सर्कस की और पकड़ कर मेरा हाथ। वहां बच्चे चल रहे थे रस्सी पर और बस एक डंडा था उनके हाथ में, बाल मजदूरी ना करवाओ के नारे लगाने वाले देख रहे थे वोे मंजर हो खड़े मेरे पास में। देखो जब ऐसा मैने तो आंसू आ गए मेरी आंख में, और इसीलिए उठाई कलम मैंने फिर अपने हाथ में। मिल जाए भरपेट रोटी रात को आहार में, चल रस्सी पर इसलिए वह करतब दिखाते संसार में। जिस उम्र में जान छिड़कते हैं मां बाप बच्चों पर उस उम्र में जान की बाजी लगाते वह बाजार में।वो चल रहे थे रस्सी पर जिससे लोगों का मनोरंजन हो जाए, पर मैंने देखा पिता को रस्सी के नीचे चलते हुए कि कहीं मेरा बच्चा ना नीचे गिर जाए। जान की कीमत देखी मैंने क्या लगती थी उनकी उस भरे हुए दरबार में, कोई फटा तो कोई पुराना सा दस~बीस का नोट बस दे देता था उनको उपहार में। मिल जाए भरपेट रोटी रात को आहार में, चल रस्सी पर इसलिए वह करतब दिखाते संसार में। जिस उम्र में जान छिड़कते हैं मां बाप बच्चों पर,उस उम्र में जान की बाजी लगाते वह बाजार में।सब देख रहे थे की उसने चलते हुए रस्सी पर रखी थी एक बोतल सिर पर, पर मैंने देखा था परिवार उसका और वो तरपाल का घर। जिसमें एक मां थी जो मुरझाई सी बैठी थी पास में, लगता था मुझे पढ़ाना चाहती होगी वह भी अपने लाडलों को पर बिना पैन और बस्ते के कैसे बैठाती उनको क्लास में। मिल जाए भरपेट रोटी रात को आहार में, चल रस्सी पर इसलिए वह करतब दिखाते संसार में। जिस उम्र में जान छिड़कते हैं मां बाप बच्चों पर, उस उम्र में जान की बाजी लगाते वह बाजार में। जो देश में सुधार लाना चाहते हैं, देकर बड़े-बड़े भाषण जो देश को नंबर 1 बनाना चाहते हैं। मिल जाए इन को भरपेट खाना इतना इंतजाम करवा दे ना दे हाथ में किताब इनको भी विद्यालय का मार्ग दिखा देना मिल जाए भरपेट रोटी रात को आहार में, चल रस्सी पर फिर वह न करतब दिखाएं फिर संसार में, जिस उम्र में जान छिड़कते हैं मां बाप बच्चों पर उस उम्र में जान की बाजी न लगाए वो वह बाजार में। Wrt by ~ अभिमन्यु
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
अभिमन्युजी….. मैं आप के बात से बिलकुल सहमत हूँ…मैं इस में एक और इजाफा कर रहा हूँ….यह तो गली मोहल्ले में सर्कस है…देखते हैं हम करुणावश दे देते है की चलो कुछ तो पेट में जाएगा…नहीं कुछ बोलते एक ये कारण हो सकता है….पर यहाँ तो जो भर पेट हैं वो भी अपने बच्चों से काम करवा रहे हैं टैलेंट के नाम से….टीवी पे ऐसे अनेकों प्रोग्राम हैं…डांस के…सिंगिंग के…बच्चों के…एक आध एपिसोड हो तो बात और है….ये कई कई हफ्ते चलते हैं…. उनमें माँ बाप बच्चों को भेजते हैं….पढ़ाई उनकी रुक जाती है…ग्लैमर की दुनिया दिखाई जाती है… शो इस ढंग से पेश किया जाता की रातों रात स्टार बना देते हैं…टैलेंट के नाम से…जब बाद में हकीकत से रूबरू होते ये बच्चे…तो कोई मानसिक बिमारी का शिकार हो जाता कोई आत्महत्या कर लेता…. इसको कोई नहीं दिखाता…. बस टैलेंट के नाम पे सब हो रहा है…
धन्यावाद
आपका बहुत-बहुत धन्यावाद अगली कविता में मै टैलिविजन और सडक पर होने वाले करतब के अंतर पर लिखने का दिल से प्रयास करूंगा।
bhut hi bhauk kr dene wali rachana hai apki……..
धन्यावाद मधु जी
धन्यावाद मधु जी
बहुत खूबसूरत अभी………अति सुन्दर विषय पर आपने अपने विचाराभिव्यक्ति पेश की है ……………. वर्तमान राजनीति पर बहुत अच्छा कटाक्ष भी किया आपने….. सपने वो नही दिखाते दरअसल हम सामाजिक रूप से इतने आलसी और विलासितापूर्ण हो गये है की …..जीवन की सच्चाई को समझना नही चाहते ……….बस अंधे भक्त बनकर ….रात को दिन कहकर आनद के पल बिताने में विश्वाश करते है ………..जमीनी हकीकत यही है की ….आज भी हम वास्तविकता से कोसो दूर है ………..!!
हान्जी सर
मै कोशिश करता रहूंगा कि ऐसी और भी पोस्ट लिख आप सब से रूबरू करवाने की
आप मेरा हौसला बढा रहे है जिसके लिए मै आपका तहेदिल से आभारी हूं
बहुत बहुत धन्यावाद
बहुत ही गहरी बात सोची आपने…. … ….बहुत ही सुंदर
गया था मेला देखने वहां यह दृश्य दिख गया,
उठाई कलम मैने फिर और इस विषय पर ही कविता को लिख दिया
Wrt by ~ अभिमन्यु
धन्यावाद बहुत-बहुत