कवि: शिवदत्त श्रोत्रियकिसी ने उपमा दी इसेमहबूबा के चेहरे की,किसी ने कहा ये रात का साथी हैकभी बादल मे छिपकरलुका छिपी करता तो ,मासूम सा बनकर सामने आ जाता कभीसदियों से बस वही है पर फिर भीहर दिन कुछ बदल जाता हैअमावस्या से पूर्णिमा तक जीता है एक जिंदगीखामोश है, बेजुबान रहा हमेशापर गवाही दे रहा हैप्रेमी और प्रेमिका के मिलन की उस रात कीकौसल्या से बालक राम ने भीजिद की थी चाँद कीझट फलक से उतर आया था चाँद पानी पर ||हर कहीं है जिक्र उसकासितारों ने भी घेरा हैफिर भी लगता है चाँद आसमान में अकेला है ॥
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खूबसूरत मनोभाव ………रचना के अंत में अधूरापन सा महसूस होता है !!
Aabhar Nivatiya ji., margdarshan karen..
Good one ……..
thanks shishir ji..
sundar likha hai aapne.
Aabhar vijay ji aapka
Nice…..
thanks anu ji
bhut hi sundar rachana…………….
bahut bahut aabhar aapka..
Shiv dutt ji….bahut sunder….nivatiyanji ki baat de sahmat hoon… Missing sa end hai…
aabhar babu ji, kuch aur bhi likha jayega aap sab ka sath rahega to..
sundar bhaw………… sundar rachna
aabhar kajal ji..