काहें भूल गयले रे भाई !अब आपन नया साल के मनाई !काहें भूल गयले रे भाई !जीवन के सौम्य – श्रृंगार केप्रकृति के बसंत-बहार केभारत के भव्य सत्कार केअन्याय के सुंदर प्रतिकार के लोग भूला गयलें अभीये,नित मंगल – गान के गाई…अब आपन नया साल के मनाई…देशवा देखलस घोर निराशा ,कतना कट गयले, विकट तमाशा;लाखन के बडी भयल हताशा,अब याद कर हो, इहे हमार अभिलाषा ! बीतल दुःख-दर्द , रक्त-संहार के,आज नईखे कवनो दुहाई…काहें भूल गयले रे भाई…अब आपन नया साल के मनाई..नव जीवन के नव संचार केप्राणियों में सुखद् व्यवहार केनित-नित गा-ल, सत्य पुकार के;शुभ मुहुर्त्त बा, दूर कर कष्ट , विकार के |वीरन् के धरती के आशा,अब के के लगाई…काहें भूल गयले रे भाई…अब आपन नया साल के मनाई…काहें भूल गयले रे भाई…!© कवि आलोक पाण्डेयजय हिन्द !
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hindu navvarsh ko sundar pantjbdh kiya hai apne… khoobsurat…….
Very nice……
Alok poorvaanchal kee bhaashaa or bhaavnaaon kaa sundar samaavesh kiyaa hai aapne is rachnaa me. Ati sundar…..
Waah……ati sunder…….
Beautiful…………………………..!!