*नयन नीर की लकीर**(अतुकांत)*हैं कुछ सूखीआँसुओ की लकीरें,जो बनती हैंभावों के प्रबल दबाव सेहृदय सेपलकों सेहाँ इन्हीं अधखुली पलकों सेढुलक करगर्म गर्मयादों की तरहकिसी जज्बात मेंकिसी की याद मेंकुछ छिपाये हुएचुपचाप मगर सब कुछ कह देते,बता देतेजता देते,हमारे बीच की प्रीतिनेह,समर्पण,का पैमाना बन कर,जब तुम जाते होहर बारछोड़ करउन्ही सूखे रास्तों परजो सजे हैंहमारे (मेरे और तुम्हारे)नयन नीर से…..गर्म और सुर्ख…यही तकदीरवही लकीर… -‘अरुण’
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Ati sundar bhaav pravaah ……
bahut khoobsoorat……….
Beautiful………………………………..!!
Very beautiful………….. Bahut din baad arun ji………!!