खुशहाली की आशा ———————- वह दिन कब आएगा ?जब सामने जो दिख रहा गगनचुम्बी ऊँची अट्टालिका के निचे ,पुआल की छज्जा पुआल की झोपडी में सोहराय महीना की जाड़ा में जब माँ की गोद से उतारकर ठंडी हरे घास पर गला फाड़कर रोती है छोटा बच्चा। फिर भी अट्टालिकाओं में रहनेवालों का नींद टूटता नहीं है। वही बच्चा ही बड़ा और युवा होकर मन में स्वप्न देखता है टूटा छप्पर मिटटी का घर को बनाएगा ऊंचा अट्टालिका। वह दिन कब आएगा ?जब सोहराय पर्व की आनंद पांच दिन और पांच रात के लिए नहीं पुरे साल भर के लिए होगा। वह दिन कब आएगा ?जब समाज की सभी बच्चे बड़ा और युवा होकर समाज में खुशहाली और शांति का साकवा बजायेगा। ———- चंद्र मोहन किस्कु ——————————————————————————————-सोहराय महीना =ठंड मौसम को ही संताल आदिवासी सोहराय महीना कहते है सोहराय पर्व =संताल आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व साकवा =संताल आदिवासियों का एक पारंपरिक वाद्ययंत्र।
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aap sahi kahte hain………bahut mushkil nahin hona aise agar sab koshish karein swarth se oopar uth kar….politics na karke desh hit mein soche toh…aaye din zaroor….
bhut badhiya ………chndrmohan ji………aadiwasi smaj ke bare me apki rachanao se bhut kuchh janne ko milta hai.