हैं नहीं आग कलमों में पुरानी सी यारों | बात दिखती नहीं कोई सयानी सी यारों ||तेग बन क्यों नहीं चलती क़लम काग़ज़ों पर |कह न पाये क़लम दिल की कहानी सी यारों ||खून लिखती मुनाफा देख कर हादसों के |है लगी बहने मतलब की रवानी सी यारों ||दर्द कहती नहीं मासूम का ये किसी से | देख कर छा गयी हो बेजुबानी सी यारों ||हाल बेहाल सा दिखने लगा हर लफ्ज़ का |बात होने लगी जब से ज़ुबानी सी यारों ||खो रही है क़लम हस्ती “मनी” आज अपनी |देखना हो न जाये ये बेगानी सी यारों ||मनिंदर सिंह “मनी”२१२ २१२२ २१२ २१२२
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Bahut Khoob lajawab sir…..
dhanywad ajay ji apka…..
Lovely creation ………………….!!
bahut bahut abhar nivaatiya ji apka…..
bahut achche mani ………..
thank you so much shishir sir……
So True…..bahut achchey se likha hai
thank you so much krishiv ji……
Bahut badhiya……….
dhanywad c m sharma sir ji…….
बहुत सुंदर रचना मनी जी……….
sukriya alka ji apka
Mani ji…… बेहद खूबसूरत गजल…… लगता है आजकल गजलो में ही बहार ला रहे हैं आप….
bahut bahut dhanywad kajal ji…..bus shayar banne ki chahat hai..aap yu hi hosla deti rahe…….iss chote se shayar ko….