हम दोनों जानते हैंएक होने के बाद भीहम दोनों के सपने अलग हैं…….कहते हैं -खाना धीमी आँच पर पकाने सेखाना अच्छा पकता है ।मैं तुम्हारे सपनों को समझती हूँपर तुमने मेरेसपने के अस्तित्व कोझूठला दिया है……तुम अपने सपनों कोमेरी आँखों से देखने कीहड़बड़ी में रहते हो,मैं तुम्हारे सपनों सेपीछा छुड़ाने कीजल्दी में रहती हूँ……अब मुझे यह कहने कीजरूरत नहींहमारे रिश्ते की जल्दबाजीहमारे रिश्ते कोकैसा पका रही है………….-अलका
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behad umdaa rachnaa. bhaartiya paripekshay me aapne rishte bannye rakhne ki majbooriyon ko kitni khoobsoorti se udghatit kar diya. Isi kaaran to society at large hypocrite hoti chali jaati hai.
प्रतिक्रिया हेतु बहुत -बहुत धन्यवाद सर…………
bhav ko sahaj hi pradarshit karti rachana…………..
बहुत -बहुत धन्यवाद मैम…………
अरमानों में उलझते रिश्तों की तनातनी से बढ़ते बोझ का बाखूबी चित्रण….लाजवाब…कशमकश है….
प्रतिक्रिया हेतु बहुत -बहुत धन्यवाद शर्मा जी………….
bahut khoob lajawab.
आपका बहुत धन्यवाद………
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lajwab rachna apki……alka ji…
बहुत -बहुत धन्यवाद मनी जी………..
विचारो की असमानता का सांस्सारिक जीवन पड़ते पर प्रभाव के साथ ह्रदय की विविशता को अच्छे शब्द दिए है आपने …………बहुत खूबसूरत ………….लंबे अंतराल के बाद आपकी कृति आनंद मिला ….स्वागत है आपका ………बधाई हो !!
प्रतिक्रिया हेतु तहे दिल से धन्यवाद सर…………
Very nice poem Alka ji….
आपका बहुत धन्यवाद मैम………
Bahut hi khubsurat…………… अलका जी ।
आपका बहुत धन्यवाद काजल जी………….
Bahut khubsurat rachana Alka ji .
बहुत -बहुत धन्यवाद मैम……. आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत अनमोल है…………..
भाव और उसके भावनाओं में जिस तरह से हमारे रिश्ते वह रहे हैं उसकी सुन्दर झाकी है।