एक कागज उजलीएक स्याही नीलीएक मन का कुँआरंगों से भरा है ।दृगो का काजलजो चमक रहा है,दबा भाव भीदहक रहा है । ।नियमों का फंदाकई रंगों में डूबाखींच-खींच मुझेजो रोक रहा है ,सही-गलत के भेदों परबार-बार मुझे जोटोक रहा है,टूट रहा है……..हाँ टूट रहा है,पलकों में बंधेभावों का सब्रअब टूट रहा है ।अब कलम चलेगादबा भावकागज पे बहेगा,रोके न रूकेगा,छिपाये न छिपेगा,क्या थोड़ाऔर क्या ज्यादाहर एक भावअब तोलेगा,हर एक भावअब बोलेगा।।-अलका
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behad sunder…………..
बहुत -बहुत धन्यवाद सर…………
bhut khoobsurati se ukeri hai apne manobhav ko……
बहुत -बहुत धन्यवाद मैम…………
क्या भावों को पिरोया है…..कमाल…लाजवाब……
बहुत -बहुत धन्यवाद शर्मा जी………..
मनोभावो का खूबसूरत चित्रांकन ………………अति सुन्दर !!
बहुत -बहुत धन्यवाद सर…………
Ati sundar
बहुत -बहुत धन्यवाद मैम………….