मेरी बेटी मुझसे है कहती, काश मैं एक तितली होतीरंग बिरंगे पंखो के संग, मैं भी घर से निकली होतीफूलो पर इठलाती इतराती, पत्तो पर से फिसली होतीखुले गगन में साँसे लेती , यूँ आजादी को न मचली होतीकैसे उसको मैं समझाऊ , इस दुनिया की रीत सिखाऊंदोहरे पैमानों की धरातल पर, कैसे आजादी की सैर कराऊँजितने उजले ये चेहरे-मुखोटे, काश मति भी उतनी उजली होतीहर बेटी फिर तितली सी होती, हर नारी होती श्रद्धा की ज्योति….
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हुत उम्दा सृजन………….हर पहलु पर खरी उतरती सुंदर रचनात्मकता !!
Dhanyawad sir
महोदय, इस साइट पर रजिस्ट्रेशन कैसे होगा, कैसे ये ‘अज्ञात कवी’ की जगह ‘कविकृशिव’ आएगा
कृपया मागदर्शन करे
bhut sundar bhav……………………………………
Thanks mam.
बेहतरीन..
dhanyawad sir
बेहतरीन रचना, रचनात्मकता का जवाब नहीं।
dhanyawad bhai
behtareen……….
dhanyawad ji
Ati sunder……….,,,
धन्यवाद् महोदय
आप सब का मागदर्शन चाहिए
धन्यवाद्
Bahut hi khubsurat rachna…………..!
सराहना के लिए धन्यवाद्
Bahut sundar
बहुत-२ धन्यवाद्
Well said
Dhanyawad ji
Bahut sundar Kavita
Dil se dhanyawad