लेती नहीं दवाई “माँ”,जोड़े पाई-पाई “माँ”।दुःख थे पर्वत, राई “माँ”,हारी नहीं लड़ाई “माँ”।इस दुनियां में सब मैले हैं,किस दुनियां से आई “माँ”।दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,गरमागर्म रजाई “माँ” ।जब भी कोई रिश्ता उधड़े,करती है तुरपाई “माँ” ।बाबू जी तनख़ा लाये बस,लेकिन बरक़त लाई “माँ”।बाबूजी थे सख्त मगर ,माखन और मलाई “माँ”।बाबूजी के पाँव दबा करसब तीरथ हो आई “माँ”।नाम सभी हैं गुड़ से मीठे,मां जी, मैया, माई, “माँ” ।सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,मगर नहीं कह पाई “माँ” ।घर में चूल्हे मत बाँटो रे,देती रही दुहाई “माँ”।बाबूजी बीमार पड़े जब,साथ-साथ मुरझाई “माँ” ।रोती है लेकिन छुप-छुप कर,बड़े सब्र की जाई “माँ”।लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,रह गई एक तिहाई “माँ” ।बेटी रहे ससुराल में खुश,सब ज़ेवर दे आई “माँ”।”माँ” से घर, घर लगता है,घर में घुली, समाई “माँ” ।बेटे की कुर्सी है ऊँची,पर उसकी ऊँचाई “माँ” ।दर्द बड़ा हो या छोटा हो,याद हमेशा आई “माँ”।घर के शगुन सभी “माँ” से,है घर की शहनाई “माँ”।सभी पराये हो जाते हैं,होती नहीं पराई मां…!
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बहुत ही खूबसूरत कृति भावपूर्ण रचना।
Thank U Ajay Sir
Behtreen rachnaa………
Thank U Shishir Sir ji
ma ko samrpit khoobsurat rachana……………
Thank U Madhu Mam
ऐसा लगा जैसे चिड़िया नन्हें शब्दों पर फुदक फुदककर मां को पुकार रही हो।
Thank U bhupendradave Sir
aalokji…माँ के रूप का चित्रण….बहुत ही प्यारा…भावुक है…सच है माँ समान कोई नहीं है…..बेहतरीन…..मैंने हाल ही में “माँ” के अलग अलग भावों को ले के रचनाएं लिखी हैं…आप उनको नज़र करएगा….
Thank U babucm Ji Main Aapki rachnaaye jarur Padhuga
बेहद उम्दा ….माँ की ममता के विविध उदहारणों के माध्यम से प्रत्येक पहलु पर प्रकाश डालती मार्मिक रचनात्मकता ……………..बधाई आपको आपकी लेखनी को !!
Bs Sir Apka Aashirwaad H..Thank u डी. के. निवातिया ji
ये योगेश छिब्बर जी की कविता है।
आलोक जी किसी और की कविता को अपनी बताना अच्छी बात नहीं है।
प्रोफेसर योगेश छिब्बर की कविता है ये।