सबकी फिक्र करता हूँ मैं अपना समझकर,ये बात और है कि वो नासमझ बनतें हैं |सबकी कदर करता हूँ मैं घुलमिल कर, ये बात और है कि वो भुल जाते हैं |सोचा बहुत मैंने कि बदल दूँ ये आदत,जीवन के अन्य पहलुओं पर नजर रखके,चुनिंदा लोगों का कर लूँ वंदन,पर जब हुआ सत्य मंथन-एहसास हो गया, नहीं आसान ये पथ,बेहतर है मूल प्रवृति का ही दामन |राकेश
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sahi kaha apne………………………………
धन्यवाद
Very true….
आभार
TRULE LINES…. BY HEART
रिंकु जी.. Thnx
Lovely well said…..
मनोबल बढ़ गया..
Bahut khoob………….
धन्यवाद
Ati Sunder…………………..!
आभार
Bahut sundar………….!
आप की प्रशंसा के लिए धन्यवाद..
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ।👌👌👌