थकी प्रार्थनाथक गई प्रार्थना हो निष्फलसो गई साधना पूर्ण विफलअब क्यूँकर दीप जले निश्चलअब क्या मंदिर में पैर धरू?अब किस दर्शन की आस करूँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?सभी आस निरास बन बैठीसुख की घड़ियाँ पीड़ा में ऐंठीमिली न वरदानों की लाठीअब किसको माला गुँथकर दूँ?अब किस दर्शन की आस करूँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?आँसू अब मुझसे शरमातेपलको में आ थम थम जातेपीड़ित मन भी कहता जावेकितने दुख को अपना समझूँ?अब किस दर्शन की आस करूँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?ठग की जमघट-सा हर क्षण हैमृत्यु तुल्य जीवन का कण हैजिसमें हर पल बस घर्षण हैअब क्यूँ साँसें श्रद्धा की लूँ?अब किस दर्शन की आस करूँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?उर कहता है साँसें भर लोधड़कन गति हुछ धीमी कर लोसंघर्षाें से खुश मन कर लोपर शूल चुभन शुभ क्यूँ समझूँ?अब किस दर्शन की आस करूँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?अंतहीन दुख का बन साथीजले कहाँ तक जीवन बातीबात धुँए की समझ न आतीक्यूँ आरती मनोहर कर लूँ?अब किस दर्शन की आस करूँँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?हर क्षण तो मरकर जीते हैंभय से सब डर कर जीते हैंबार बार मरकर जीते हैंआस्था का अब क्यूँ पाठ पढूँ?अब किस दर्शन की आस करूँअब किस मधु से विषघट भर लूँ?जब तृप्ति शिथिल-सी हो जावेथकित मन कुछ सोच ना पावेकर्मरत भी रहा ना जावेतब किस भक्ति का श्रंगार करूँअब किस दर्शन की आस करूअब किस मधु से विषघट भर लूँ?…..भ्रूपेन्द्र कुमार दवे00000
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बहुत अच्छी रचना।
Dave ji.. Utkrishta rachna.
nirasha ki PLO ka sajiv chitran kiya hai apne……..
Behad dared bhari rachnaa. Peeda ko nikal kar rakh diya hai aapne.