यूँ ही नहीं स्वप्न देखता हूँ मैं, सच कहूँ तो ये आइना हैं-उन तानों बानों का जिनकाजुड़ाव है मेरे जज्बातों से,इरादों से और उन्मादों से |सराबोर हूँ मैं कुछ इस कदरस्वयं बढ़ रहे हैं कदम,औचक हो रहा है आभाषजैसे आने वाले क्षण अपनी झोली में समेटे हैंउमंगों के बेपनाह तरंग |यूँ ही नहीं स्वप्न देखता हूँ मैं,सच कहूँ तो ये आइना हैं-उन पहलुओं का जिनका है नाताजीवन के विभिन्न फलसफों से,उम्मीद से जीवन्त अालिंगनों से ||सप्रेम, राकेश पांडेय
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अति सुन्दर …………………………………!!
इस पटल पर ये मेरी पहली कविता है | आप की प्रशंसा के लिए धन्यवाद | कृपया ऐसे ही मनोबल बढ़ाते रहें |
sahi likha….ati sundar….
धन्यवाद जी.
badiya sir…….
Thnx bhai.
khoobsurat rachana apki…………….
sima…….. pe khda hai tu……..is kavita ko bhi pdhe.
Thnx Madhu ji. Aapki suggested rachna padhkar faujio ki tatprta ka sajag ehsas hua.
Sunder…….
Thnx Vivek ji
Nice write…………
Thnx.
Very nice….
Thnx Anu ji
Bahut hi khubsurat rachna………..!
धन्यवाद..