लड़की =====छुटपन में काम उम्र में जो लड़की दौड़ती रहती थी कित -कित खेल के बहाने और दौड़कर पर हो जाती थी समाज की नियम-धरम रेखा जिसे खींचा है समाज के ही एकदल शासक मर्दों ने। वह लड़की ही अब बड़ी हुई है उम्र से अब वह डर रही है दौड़ना। डर ,समाज की उन शासक मर्दों से औरतों की विकास देखकर जिसकी सत्ता की कुर्सी थरथर काँप रही है। वह लड़की स्वतंत्र रहना चाहती है और हाथों से अनंत आकाश छूना चाहती है छोटी -बड़ी उँगलियों से पर कँहा ——–छू ही नहीं पा रही है। ————-चंद्र मोहन किस्कु **कित -कित खेल =आदिवासी संताल खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल।
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very well written sir
आपकी भाषा हिंदी न होते हुए भी आप कमाल का लिख रहे हैं….नमन है आपको…आपकी कोशिश को… बेहद ही उम्दा भाव हैं रचना के…बहुत ही सही डर…बेबसी का अवलोकन है रचना में….
अति सुन्दर ………………नारी विवशता को दर्शाती सुन्दर रचना !
bhut sahi kaha kisku ji……………………
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