आशा की प्रदीप—————— १ अंधकार की आँचल छोड़कर मैं सूर्यदेव की ओर बढूँगा दुःख और पराजय की पथ पर प्रदीप बहुत सारा जलाऊँगा। २ बुझती ख्वाहिश की डगर पर आशा की प्रदीप जलेगा कुछ अपनों से कुछ दूसरों से जलेगा। ३ मन में सुख और शांति की सुनहरी अट्टालिका स्मरण कर सामने की कष्ट दूर फ़ेंक कर आशा की डगर पर आगे बढ़ना होगा। ———-चंद्र मोहन किस्कु
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bahut hi sundar sir…….
आत्मविश्वास से परिपूर्ण खूबसूरत भाव प्रस्तुत करती अच्छी रचना !
saty vichar ……aassha hona jaruri hai……