चलो आज फिर दिल को मनाया जावेयादों की किश्ती को सजाया जावे। यूँ नंगे बदन कब तक चलोगे, यारोंचलो फिर किसी का कफन चुराया जावे। इस शहर को और भी सजाया जायेहर लाश को चौक पे बिठाया जाये। यह गुजरात है यहाँ क्या किया जायेमैकदा अब घर को ही बनाया जाये। जला दिया जाता है हर घोंसला यहाँक्यूँ न इस चमन को जलाया जाये। पढ़कर गजल बहुत जो रोना आ गयाक्यूँ ना इसे अश्क से मिटाया जाये। पर- शिकस्ता हूँ यह जान लो, हवाओंअब सोचो कि मुझे किधर उड़ाया जाये। माना कि मेरी कलम सूरते-शमशीर हैचलो पढ़ना किसी इक को सिखाया जाये। चलो इस शहर को फिर से जगाया जायेकल का अखबार फिर बिकवाया जाये। जिस दरो-दीवार पे खामोशी लिखी हैअच्छा हो उसे ही खटखटाया जाये। पाजेब की खामोशी कब तक सुनोगेजंजीर की आवाज को जगाया जाये। इधर जिस्म के जलने की बू आती हैचलो, दहेज इसी शहर में जलाया जाये।—- भूपेंद्र कुमार दवे00000
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sundr sir……
पर यथार्थ मे मुझे नही लगता की गुजरात मे ऐसा होता होगा……??
It is just a thought — a metaphor used to refer to a place wherever drinking is prohibited in public.
Bahut khoob ……………..
बहुत उम्दा …..आपके जज्ज्बातो में दम है…….उन्हें कलमबद्ध करते जाइये।
Bahut hi khubsurat…………..
ati sunder sir