दिल की किताब पे चली, वो स्याही थी प्यार की,मेरे हाथ लगी तन्हाई, और तस्वीर यार की।उसके सामने बैठूँ तो आँखें ना झुके,उसे देखता जाऊँ मै तो बिना रुके,अदाएं कर दे कत्लेआम, ज़रूरत नहीं हथियार की,मेरे हाथ लगी तन्हाई, और तस्वीर यार की।हर टूटते तारे से ये सिफ़ारिश की थी,अपनी हर दुआ में मैंने ये गुज़ारिश की थी,मिल के बिछड़े ना हम, ना घड़ी आए इंतज़ार की,मेरे हाथ लगी तन्हाई, और तस्वीर यार की।अपनी तक़दीर पे रोना मुझे आने लगा है अब,उसका मुँह मोड़ के जाना सताने लगा है अब,फिजूल लगती है ज़िन्दगी, कोशिश मेंं ऐतबार की,मेरे हाथ लगी तन्हाई, और तस्वीर यार की।
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बहुत उम्दा अजय.आपकी भावनाएँ बड़ी वास्तविक लगती है.
शुक्रिया सर मेरे द्वारा साझा किये गये भावों को समझने के लिए।
Ajay ji….. Aap bahut hi achhe kavi hai….
….. Meri maniye to aap apni rachnaye
Book me prakashit karwaye…… A am sure
सफलता आपके कदम चूमेगी……. All the best
…… God bless you
Ji jaroor Kajal ji shukriya
Bahut hi sundar rachna…Ajay ji…..
bahut bahut dhanyawad
दिल को छूती रचना
धन्यवाद सर
बेहद खूबसूरत रचना ।
बहुत आभार आपका
dil ki aawaj shabdo me ……….bahut khoob
thanks sir
ह्रदय के भावो के अच्छे शब्द दिए है आपने ……….अति सुंदर !
thank you sir
Bahut sunder………..
thank you sir
bhut khoobsurat rachana apki……… ajay j………
dhanyawad mam