कहने को छू आए चाँद हम,पर पड़ोसियों से रहें अंजान हम।बढ़ रही आबादी के साथ यहाँ,आज किसी के पास फुर्सत कहाँ?आज दम तोड़ रही इंसानियत यहाँ।पूरी करने अपनी ख्वाइशें,इधर उधर सब दौड़ रहे।इकठ्ठा किया मनोरंजन का सामान,पर खोया मन का चैन कहाँ?आज दम तोड़ रही इंसानियत यहाँ।वो भी क्या जमाना था,पूरा मुहल्ला अपना था।हम, आज एक ही घर में,दूर दूर है, साथ रहते हुए भी यहाँ,आज दम तोड़ रही इंसानियत यहाँ।दोस्ती फेसबुक पे सिमटने लगी,शाम बिताने को सच्चा दोस्त नहीं।रिश्तो से मासूमियत अब खोने लगी कही,न ही अपनापन है और न ही भावनाएं रही यहाँ,आज दम तोड़ रही इंसानियत यहाँ|भेड़चाल सब चलने लगे हैबुद्धिमत्ता कही खोने लगी है।न जाने, क्या हो गया है सबको?न जाने किसकी नज़र लगी यहाँ?आज दम तोड़ रही इंसानियत यहाँ।‘अनु माहेश्वरी’चेन्नई
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super…..anu ji……. par ek baar dekhe 2 para mein jahan ki jagah kahan to nahi…….
Thank You Mani ji…..
आज जे कटु सत्य को बयान करती अनुपम रचना
Thank You, Shishir ji….
behad Khoobsurat
Thank you, Ajay ji……
Well done ANU Ji……………वर्तमान परिपेक्ष्य की वास्तविकता को दर्शाती सार्थक रचनात्मकता ……………..आपका चिंतन विचारणीय व् चिंतनीय है ! .!!
Thank You, Nivatiya ji….
bhut sahi kaha apne anu ji…………………sundar rachana…….
Thank You, Madhu ji….
Good one anuji,..
Thank You, Lucky ji….
Beautiful creation Anuji
Thank You, Meena ji…
Bahut hi gehri aur sachchi baat kahi hai aapne . Heart touching Poetry
Thank You, Rajeev ji….
Bahut hi khubsurat rachna….. Aapki anu ji
Thank You, Kajal ji….
100% yathaarth…..satya……
Thank You, Sharma ji…
ठीक रचना अनु दीदी…….
Thank You, Alok…..
सत्यता के साथ …बहुत सुन्दर |
Thank you , Vijay ji…
बहुत सही कहा आपने। अभी तो लोगों का रिश्ता फेसबुक में ही सिमट गया है। मैं शाम को किससे बात करूँ ऐसा कोई मिलता ही नहीं।
Thank You…..