दुहाई देती रही है मैं,मुझे छोड़ दो, मुझे मत लूटो, ये चीख-चीख कर कहती रही मैं,मुझे छोड़ दो, मुझे मत लूटो,पर उन दरिंदों पर तो हैवानियत सवार थी, वो थे शिकारी मेरे और मै उनकी शिकार थी, मैं लूट गयी बर्बाद हुई, अच्छा हुआ इस बेजान कुदरत के, पहरे से मै आजाद हुई, तब मैंनें कहा, तुम भी किसी के भाई हो होगी तुम्हारी भी बहन, जब उसके साथ होगा ये सब,क्या कर पाओगे तुम ये सहन,क्यूं शर्म से हैं झुक गई ये निगाहें अब तुम्हारी, क्या इज्ज़त सिर्फ तुम्हारे घर में हैनही है कोई इज्ज़त हमारी ! घुट-घुट के दर्द मैने सहा, कभी किसी से कुछ ना कहा, मुझे अब भी इनायत रब से है, उसके इन्साफ की आस कब से है।क्यूंकि मै नारी हूँ!
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nari divas pr nari pida ko bkhoobi ukera hai apne ajay ji.
nari nahin sansar nahin phir bhi yeh sab chal Raha Hai rukne ka naam nahin le raha hai.
Bahut hi achchhi rachna…… Aapki Ajay ji
dhanyawad Kajal ji
Very Nice Ajay…………….इस रचना को आपने मिश्रित कर दिया यदि इन भावो को आप कविता या लघु कथा में बांधते तो ज्यादा प्रभावशाली होती !
apne vichar rakhne ke liye shukriya
Very nice Ajay ji.
Bahut Bahut aabhar aapka
very good bhai………
मै क्या कहू समझ मे ही नही आ रहा………
आपकी रचना को पढकर मै यह सोचने के लिये मजबूर हो गया की आज की आधुनिक पिढी को क्या हो गया………
वो कब नारी को देवीस्व्रुपा समझेंगे……
कभी ऐसा होगा भी या नही……
कही नारी का अस्तित्व ही समय के साथ खत्म हो गया तो……
अगर ऐसा हुआ तो दुनिया का क्या होगा………
bilkul Sahi bol rahe Ho aap.
bhut khoob likha hai apne… nari ki vyatha ko kafi achhe dhnag se chitrit kya hai apne.
धन्यवाद !