(1)
पगडंडियों में बिखरे फूल-पत्तों को देख कर
एक ख्याल सिर उठा कर मुझ से एक
सवाल पूछता है –”वसन्त आता है
तो ठीक है , प्रकृति सज सी जाती है
मगर साथ में पतझड़ क्यों ?
क्या चाँद में दाग जरुरी है ।
(2)
बादलों की रजाई से आँख-मिचौली खेलते चाँद से
मैनें एक सवाल पूछा –”तुम्हारी चाँदनी की रोशनाई से
नीले अम्बर की देह पर , तुम्हारे नाम कुछ लिख छोड़ा था
फुर्सत मिली क्या? मेरा लिखा पढ़ा क्या?
XXXXX
“मीना भारद्वाज”
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ati sunder mam
Thanks Ajay .
bhut khoob……………… meena ji…..
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Hardik Dhanyawaad Madhu ji.
उपमाएं देना कोई आपसे सीखे मीना जी.पतझड़ ना होगा तो फिर वसंत को कौन पह्चानेगा.पर शिकायत वाजिब है.
Shishir ji हार्दिक धन्यवाद , शिकायत है यह छोटी सी .शाखों से गिरे फूल -पत्तियाँ उदास सा माहौल बना देते हैं । तारीफ के साथ समझाने.के.लिए पुनः धन्यवाद .
Bahut hi अलग और हट कर कविताएँ लिखती हैं आप
मीना जी………….. लाजवाब………
Tahedil se shukriyaa Kajal ji .
Nice one…………आपकी विशिष्ट लेखनी की छाप को दोहराती उम्दा रचना ।
Thank you so much Nivatiya ji for appreciating my work.
Behad khoobsoorat……..
Hardik dhanyawaad Sharma ji.
Bahut Sundar…..
Thank you so much Anu ji.
lovely thought maim………
Thanks a lot Krisna ji..
बेहतरीन….. बेहतरीन…….. बेहतरीन…………….
Thank you so much Alkaji for appreciating my work .