ना हो शब्दो से बयाँ येना ही कोई परिभाषा हर किसी के मन मे हैदिलेस्पर्श की अभिलाषाकाम है इसकादो रूहो को जोड़नाआसाँ नही इसेइक बार मिलाके तोडनाप्यार,इक भाव हैकडी धूप मे छाव हैप्यार,इक तपस्या हैजिसमे सारी खुशिया हैप्यार,इक समर्पण हैजिसमे सब कुछ अर्पण हैना जाती धर्म का रंग हैकेवल प्रिया का संग हैप्यार,भरोसा और लगाव हैअलगाव मे बडा घाव हैना हो शब्दो से बयाँ येना ही कोई परिभाषाहर किसी के मन मे हैदिलेस्पर्श की अभिलाषा….कृष्ण सैनी
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Bahut Khoob Guru Aapki kavita toh waqai kabil-e-tarif Hai.
Thanku…………
अजय भाई
Lovely expression ……………….
thanks shishir sir
आपका आशीर्वाद यू ही बनाके रखियेगा
आपका आभार
sundar prem kavya…………………
saini ji…………
Thanku very much madhu maim…
Wahhhh बहुत ही खूबसूरत परिभाषा दी आपने
प्यार की……… Very very nice…….. Krishna ji
Thanks काजल जी
लेकिन मे आपको बताना चाहुंगा काजल जी ये कविता मैने आपकी रचनाओ से प्रेरीत होकर ही लिखी है
इसलिये प्रशंसा की पात्र तो आप ही है……
Kya baat hai….. मैने तो कभी नहीं सोचा था कि
मै किसी को सिखा पाऊँगी….. पर श्रेय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
Beautiful……………………….!
Thanku very much sir ji……
Very nice ……..,
Thanks meena ji……
Bahut khoobsoorat………
Thanku sir ji……
आपका दिल से आभार
Wah bro……
Bhabhiji khush ho gai hogi pdkr………
ha ha ha……
vry good……
ha ha ha
bhabhiji………
धन्यवाद गौतम भाई,
अभी मे सिंगल हू.
Ha ha ha…………
College wali bhabhiji(p.k.)……………
hmm……
this is not fair………
गौतम भाई मेरा आपसे निवेदन है की आप हमारे काव्य के इस मंदिर मे निजी टिप्पणी मत किया करो……
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बुरा मत मानना भाई पर ये गलत है!!!!
Really sorry sir………
Aage se aisa nhi hoga……………
Thanks bhai…………………