कोई सज के सँवर के काश मुझको भी रिझाता आँखों से बात कर हरदम बहुत नज़दीक आता मिटा देता वो खुद की हस्ती अगर पहलू में मेरेमेरा चेहरा भी फिर फूलों सा खिलता मुस्कुराता चाहने भर से मगर मिलती नहीं सौगात कोई मालिक ने खुद की मर्जी से सभी माला पिरोईकिसी के सीने में दफ़न राज़ तुम जानोगे कैसेजाने कितनों ने इसी गफ़लत में जिंदगी खोईं शिशिर मधुकर
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Bahut Achcha sir aapne toh phir se woh lanhe yaad dila diye
aapki khoobsoorat si pratikriyaa ke lie haardik aabhar Ajay………..
beautifull
लगता है सर जी College के दिन याद आ गये………
हा हा हा
Appke shabdon me sab bas “दिलेस्पर्श की अभिलाषा” hai. Sochne kee baat ye hai ki kyaa vaastv me sabki ye abhilasha poorn hotee hai ya bas shanik aanand miltaa hai.
ji सर प्यार दो प्रकार के होता है
(1) वासनापुरीत -यानी की इसमे क्षणिक आनंद(जो की वास्तविक आनंद नही बल्की आज के युवा वर्ग के लिये मनोरंजन है) मिलता है,जिसे हम शारीरिक प्रेम भी कह सकते है.
(2) समर्पणपुरीत प्रेम- जो न तो धर्म देखता है न रंग-रूप और ना ही अमीरी-गरीबी,जब किसी को ऐसा प्यार होता है तो निश्चित ही वह पूर्ण आनंद को प्राप्त करता है.
aapne bahut saty kaha krishna ………..
Thanku सर
हमेशा आप के मार्गदर्शन का आकांक्षी रहुंगा……
always welcome krishna……
Bahut hi khubsurat………… Lajwaab.. पंक्तियाँ
Madhukar ji…..
Thank you so very much Kajal ji for your lovely words………………..
Truly said ………….very nice shishir ji………….!
Hearty thanks NIvatiya Ji …………….
Beautiful. Creation Shishir ji .
Thank you so very much Meena Ji ………….
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bhut sundar panktiya………. bhav khoob hai sir…………
Madhu ji aapkaa bahut bahut shukriya ……
Behad khoobsoorat………
Hraday se shukriya Babbu ji ……..