तेरे नैनो से छलक रही है तेरे प्रेम की रस -धार तन – मन मेरा भीग रहा हैजैसे हो सावन की प्रथम फुहार,,,खुद को मैं भी जान रही हूँ तेरी नज़रों से पढ़ कर हिरनी जैसी चंचल हूँ मैंलावण्य कुसुम से बढ़करदे -देकर उपमाएं तुमने मेरा रूप दिया है सँवारतन – मन मेरा भीग रहा हैजैसे हो सावन की प्रथम फुहार,,,तेरी एक चाह पर अपनासर्वस्व तुझे मैं कर दूँ अर्पणह्रदय में मेरे बसा है तूमेरा तन – मन तुझे समर्पणनहीं है कुछ भी ऐसा मुझमेजिस पर तेरा न हो अधिकारतन – मन मेरा भीग रहा हैजैसे हो सावन की प्रथम फुहार,,,एक-दूजे में अस्तित्व समायापृथक नहीं अब हम दोनोंतुझमे मैं हूँ और मुझमें तूइस तरह से पूर्ण हुए हम दोनोंआँखों से मेरी बरस रहा हैतेरे हृदय का अप्रतिम प्यारतन – मन मेरा भीग रहा हैजैसे हो सावन की प्रथम फुहार,,,सीमा ” अपराजिता “
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Behtreen …….Behtreen …………Behtreen .Bas is line ko aise Karne dekhiye
हृदय का तेरे प्यार ke sthan par
Tere hraday kaa anmol pyaar.
Kyonki anyathaa line apoorn si lag raha hai Seema ji.
Aapki bhaavnaa abhivyakti ki kaabiliyat ko salaam
Dhanywad shishir ji
Bahut hi lajwaab rachna……… Seema ji
Dhanywad kajal ki
bhut hi khoobsurat rachana seema ji………………….
Bahut -bahut aabhar madhu ji
Seema ji , bahut khubsurat rachana
Behtareen……….
very nice……………………….!!