तेरा मुझको मालूम नहीं मैं अपने दिल की कहता हूँचोट लगीं जो अपनों से उनकी सब पीड़ाए सहता हूँ वो ही दुनियाँ है जीवन है और गर्दिश में चन्दा तारे तुझसे मिलने की राहों को पर मैं तकता ही रहता हूँ क्या आलम था बूंदों सी बरस तू मेरे भीतर समाई थीनदियाँ का पानी हूँ बिन तेरे हरदम तन्हा सा बहता हूँतेरा साथ मिला तो मुझमें ऊँची चट्टानों सी ताकत थी प्रेम का रस सूखा तो अब मैं रेती के टीले सा ढहता हूँचाहे ग़म कितना भी आए मैं बिल्कुल भी मायूस नहींनई खुशी की आशा में मैं बस हरदम जिन्दा रहता हूँ शिशिर मधुकर
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bhut khoobsurat gazal likha sir apne……
Madhu ji aapke shabdon kaa hraday se shukriyaa …….
Beautiful…..Shishir ji….
Thank you so very much Anu ………….
Bahut khubsurat rachana Shishir ji
Thank you Meena ji for your lovely words. They mean a lot.
Bahut hi lajwaab rachna …….. सबसे अच्छी मुझे
लगी जो पंक्ति ……..
तेरा साथ मिला तो मुझमे ऊंची चट्टानों सी ताकत थी ,
प्रेम का रस सुखा तो मैं रेती के टीले सा ढहता हूँ ।
……… वैसे तो आपकी पुरी रचना काबिले तारीफ है ।
Kaajal ji aapke an old shabdon ke lie dil kee gahraaiyon se shukriya.
Beautiful description in the time of separation…..!!
So nice of you Nivatiya ji for your words………
Behad khoobsoorat……..
Aapkaa hraday se shukriya Babbu ji ………..