बचपन में हम गए एक मेले में….बन-ठन ठुम्मक ठुम्मक ठेले में….हर तरफ थी खूब चहल पहल…लोग भी थे बड़े रंग बिरंगे से…कोई लाल कोई पीला…..हम थे नीले में..हर तरह के स्टाल थे लगे हुए…कहीं बर्तन…कहीं कपडे सज्जे हुए…खाने पीने के स्टाल पे थी भीड़ भारी…कचोरी पूरी और चने की चाहत सब को भारी….एक तरफ था खूब शोरगुल हो रहा…ताली पे ताली थी रह रह के बज रही…हम भी उत्सुक से वहां जा पहुंचे…देखा बीचो-बीच गधे को मालिक उसका लेके खड़ा….गधा भी बड़ा अजीब सा गधा था….जो भी कहो कान में सिर्फ ‘हाँ’ में सर हिलाता था…शर्त थी मालिक की जो ‘ना’ में गधे की गर्दन हिलवा देगा…जितना लगाएगा १० गुना इनाम उसको वो देगा…देखते देखते कई लुट गए…सब हैरान ऐसा ही क्यूँ है….गधा सर हाँ में ही हिलाता क्यूँ है…हमने फिर एक तरकीब लगाई…और फट से शर्त दे लगाई…दिया मालिक को ५० का नोट…बोला अब तैयार रखो १०० के पांच खरे नोट…हमने गधे के पास जा कान में…यूं मुंह में मिश्री रख के बोला….हे गधे जी…..इतना सुनना था…कान गधे के खड़े हो गए…हमारी तरफ देख यूं मुस्कुराया…..जैसे मेले में बिछड़ा भाई हो पाया….हमारे दिल में भी कुछ था होने लगा…संभाल अपने को फिर कान में बोला….गधेजी…मन हमारा नहीं आपको गधा बोलने का…इतने ग्यानी हो…मेहनती हो…आप गधे तो हो नहीं सकते…खुद देख लो मेहनत तो आप कर रहे हो…मालिक आराम से खा रहा…”आप” तो धूप में जल रहे हो…वो मजे में शरबत उड़ा रहा…आप सच में गधे हो क्या …जैसे ही मैंने ये कहा….गधे ने जो ना में गर्दन दे हिलाई….मालिक की तो जैसे सब मुंह को आयी…लोग दे ताली पे ताली बजा रहे थे…हम मालिक से अपने पैसे मांग रहे थे…वो पूछा ऐसा बोला क्या तुमने कि गधा…ना में ही सर हिलाया….मैंने फिर सब उसको बताया..लोग हंस हंस के पागल हो रहे थे…और मालिक खिसियाने से हो…’गधे जी’ को नोच रहे थे….\/सी.एम्. शर्मा (बब्बू)
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bhut khoobsurat …………………sharma sir………….
तहदिल आभार आपका…..Madhuji….
Good humor with a message that realization of truth can bring change
तहदिल आभार आपका……जी सही कहा आपने…मधुकरजी….
Bahut hi Khoobsurat rachna Sharma ji…..
तहदिल आभार आपका……Anuji….
Bht hi aachi or majedaar
Shabnamji…..दिल से अभिनंदन आपकी पहली प्रतिकिर्या का….हा हा हा….तहदिल आभार आपका…..
Bahut Khubsurat Babbu ji…..आज के हालातो पर अच्छा व्यंग किया है आपने …..वास्तविकता यही है की आज इंसान सब कुछ जानते हुए भी खुद से अपरिचित अनजान असहाय नजर आता है ।
Nivatiyaji…..तहदिल आभार आपका…आपकी नज़र के कायल हैं हम…. आपने बिलकुल सही फरमाया….अपरचित…अनजान…निसहाय होते हुए भी हम दूसरों को जो हम जैसे हालात में ही हैं मजाक बनाते हैं….शायद अपनी व्यक्तिगत कुंठाओं को छुपाना चाहते हैं….
Bahut sundar vyang rachana Sharma ji .
तहदिल आभार आपका……Meenaji……..
Bahut hi khubsurat mazedar rachna…
Aapki sharma ji ……..
तहदिल आभार आपका…..Kajalji….