Original मैं तुमको बुरा कहती हूँ लोग ये बताएँगेतुम दूर रहो मुझसे ये ही सब सिखाएँगेनादां हैं सभी लोग जो ये जानते नहीं हैंप्रेम की कसमें हम हर हाल में निभाएँगेChanged मैं तुमको बुरा कहती हूँ लोग ये बताएँगेतुम दूर रहो मुझसे ये ही सब सिखाएँगेअंजान है ये लोग जो सच जानते नहीं हैंप्रेम की कसमें हम हर हाल में निभाएँगेशिशिर मधुकर
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sundar panktiya ……………………………..
Thanks Madhu ji. Pl. also see the altered one.
Sir……..बहुत खूबसूरत……नादां शब्द का प्रयोग मुझे लगता भोलेपन, शोखियों, नज़ाकत, अदाओं के लिए प्रयोग किया जाता… चालाकी या होशियारी के लिए शायद नहीं….
Thank you Babbu ji. Pl. comment on the changed version as well.
very nice shishir ji…….I think ,,,, पंक्तियों के माध्यम से जो बात आप कहना चाह रहे है वह पूर्ण रूप से उभर कर नहीं आ रही है , एक बार फिर से अवलोकन करे !!
Thank you Nivatiya ji. How does the changed version look now?
Bahut sundar………..
Thank you Anu. Pl also see the changed version.
Very very nice……… Madhukar ji
So nice of you Kajal ji. Pl. also comment on the changed version.
Shishir ji , मेरे ख्याल से “”नादां “एक लीक.पर चलने वाले कि सब जैसा कर रहे हैं वैसा ही हम भी करें ( एक तरह.से भोलापन) और” अंजान ‘ से आशय अनभिज्ञता से है कि दोनों के मध्य की प्रतिबद्धता के बारे में अनजान है । बहुत सुन्दर रचना.
Thank you so very much Meena ji. You have rightly elaborated on the confusion.