हाय यह क्या हुआ मेरे साथ . कैसा सितम हुआ जिंदगी के साथ. संजोये थे जो सपने मैने अपनी आँखों में, वोह सपने कहाँ खो गए? कल तक जो जीवन के सफ़र में , साथ चल रहे थे हाथों में हाथ डालकर. खवाब था क्या ? होश आया तो वोह हाथ भी नहीं. वोह हाथ कहाँ खो गए ? वोह शायद मेरा खवाब ही था, जिसकी हसीं तस्वीर बनायीं थी मन में. आँख खुली तो वोह तस्वीर भी लुप्त हो गयी. मेरे दिल के टुकड़े हो गए . एक मन चाही मंजिल पाने का खवाब देखा था. एक बेहतर जीवन का सपना ही तो संजोया था. क्या मैने कोई गुनाह किया था? मेरे अरमान क्यों मसल दिए गए ? ओह ! यह दुनिया की कडवी सच्चाई , मुझे कहाँ से कहाँ ले आई ? मेरी बेरहम तकदीर मुझे क्यों ? अर्श से फर्श पर ले आई . यह धोखे मेरे साथ इसी ने किये. उफ़ ! यह कैसा इन्साफ हुआ मेरे साथ , मैने तो कभी कोई गुनाह किया ही नहीं. किस अपराध की मिली है मुझे सज़ा ! यकीं मानिये ! मुझे तो मालूम ही नहीं. क्या यह खेल मेरे संग नियति ने खेले? हे भगवान् ! अब तुम बताओ , मुझे भेजकर बेरहम दुनिया में , तुम कहाँ खो गए.
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bhut khoobsurat bhav onika ji……………
..sundar bhav ho kavita ko padhkar apnak kimti cmment dijiye.
beautifull बेहतरीन रचना Onika जी
Bahut achchha likha aapne……
sundar………..
nice poem…………….
Onika fir vahi kahani kisi kee jubaani. dard chalak aayaa hai.
very nice ……………Onika ji….!
Bahot badhiya pajii
Bahot khubsurat writte kiye hai
Is poem me ek ek sand saandaar hai