आवश्यक सूचना
(यह राजनितिक हालातो के परिपेक्ष्य पर लिखी गयी है इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई सम्बन्ध नहीं है )
(मन की बाते)
कभी जनता को मन की बातों से बहला रहे है ।कभी दुनिया को धन की बातों में टहला रहे है ।।
क्या कहे शख्सियत वतन वजीर-ए-आला की।भाई सरीखे को भी रेनकोट में नहला रहे है ।।
कौन नही वाकिफ अंदाज-ऐ -बया से इनके ।नोटों के मार तमाचें मीठी बातो से सहला रहे है ।।
अगर होते है दलदल-ऐ-हमाम में सभी नंगे ।फिर खुद को कैसे पाक साफ बतला रहे है।।
देखना है हाल-ऐ-हिन्द तो गाँवों में जाकर देखो।क्यों शहरी आबोहवा आमजन को दिखला रहे है ।
वतन तो आज भी कैद है चंद लोगो की मुट्ठी में।बना के खिलौना इस हाथ से उस हाथ झुला रहे है।
राजनीति के हालात आज तुमने कैसे बना डाले ।काम से ज्यादा जनता को वादों में टहला रहे है ।।
सजता है कभी ताज इनके सर कभी उनके सर ।आमजन को आज भी खून के आंसू रुला रहे है।।
कोई करे इत्तेफाक या न करे जमीनी हकीकत सेसमझ के कर्म “धर्म” आज सच को दिखला रहे है।।।।।डी के निवातिया
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Lovely sarcasm ………………
Thanks SHISHIR Ji……………….!
Very nice……
Thanks ANU Ji……………!
Bahut nice bhai ji
Thanks Alok…………………..!
Maan gaye janaab……kya lapeta hai….bahut gahra…..teekha kataaksh……
Thanks BABBU JI……………………..!
Kya baat hai……. Bahut hi lajwaab……..!!
Thanks KAJAL……………….!
Nice sarcasm ……………
Thanks MEENA Ji……………………..!
very nice……. nivatiya………… ji…….
Thanks MADHU Ji………………..!
outstanding sir…you have written so gracefully about social and economic situation of the society.
Thank U Very Much LUCKY ………….!