इन नजरों से देखो प्रियवरपार क्षितिज के एक मिलन हैधरा गगन का प्यार भरा इकमनमोहक सा आलिंगन है..पंछी गान करे सुर लय मेंनभ की आँखें लाल हुई हैंकुछ दुःख सूरज के जाने काकुछ शशि का अभिनन्दन हैधूल उठी है बस्ती बस्तीगैया लौट के आई हैबछड़े की आँखें चमकी हैममता भी क्या बंधन हैशमा जली है परवाने को खबर पड़ी तो भाग आयाला न सका कुछ,खुद जल बैठाहाय कैसा वंदन हैजीवन भी क्या जीवन जैसेरंगमंच का खेल कोईकभी इसी में हास छिपा हैकभी इसी में क्रंदन है.. -सोनित
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Waahhhhhhhhhhhhh….सोनितजी…..क्या गोधूलि पहर का चित्रण किया है………बेहतरीन………
Bahut bahut dhanyvaad babbu ji…
Behtreen rachnaa sonit. kamaal kee kalam.
Bahut aabhaar shishir ji…
bahut umda …………..!!
Bahut hi khubsurat rachna sonit ji.