सुनो ! मैं नहीं चाहती, की तुम मुझे मार्ग का कंकड़ समझो। और ना ही यह चाहती हूँ, की तुम मुझे मंदिर की मूरत बनाकर पूजो। पुष्प चढ़ाकर ,माला अर्पण कर, दीप जलाकर मेरी आराधना करो। मैं जीवन संगिनी हूँ तुम्हारी। मैं अर्धांगिनी हूँ तुम्हारी। मेरे सिवा तुम्हारा और , और तुम्हारे सिवा मेरा कोई नहीं सहार। मैं नदी हूँ ,और तुम मेरा किनार। निस्संदेह में चंचल हूँ , मगर तुम मेरा स्थायित्व हो। किनारा यदि नदी को छोड़ दे , तो नदी भटक जाती है। और नदी गर किनारा छोड़ दे , तो किनारों की बस्ती उजड़ जाती है। मैं पतंग हूँ और तुम मेरी डोर। डोर से पतंग जब छुट जाती है तो , आसमान में खो जाती ह। आसमान में खो जाये तो कोई बात नहीं. धरती पर नहीं गिरनी चाहिए। क्योंकि पतंग यदि धरती पर गिरी , तो दुनिया लूट जाती है। डोर के बिना पतंग का और पतंग बिना, डोर का कोई अस्तित्व नहीं । इसीलिए मैं न देवी, ना नदी और न ही पतंग , बनना चाहती हूँ। मेरी तो अभिलाषा है बस इतनी , तुम मेरे वृक्ष बने रहो ,और मैं तुम्हारी लता बनी रहना चाहती हूँ। क्योंकि वृक्ष जन्म- जन्मातर तक अप्रत्यक्ष रूप से , प्रेम-पाश में बंधे रहते ह। मैं भी तुम्हारे साथ आत्मिक रूप से बंधे रहना चाहती हूँ।
Оформить и получить экспресс займ на карту без отказа на любые нужды в день обращения. Взять потребительский кредит онлайн на выгодных условиях в в банке. Получить кредит наличными по паспорту, без справок и поручителей
ek stri ke hraday ki prem abhilaashaa kaa khoobsoorat chitran …………
behad khoobsoorati se bhaavon ko piroya hai…..safal zindagi ka chitran…..waah….kya baat hai……….
bhut sahi kaha apne onika ji………………….
Nice one Onika ji………………तुम मेरे वृक्ष बने रहो ,और मैं तुम्हारी लता……but ..वास्तविकता में “लता” नही, सार्थक रूप में “जड़” का अस्तित्व धारण किये होती है !!
Very true…Real love and trust shown by you.great thought…..
dhanywaad ap sabhi ko