कीमतें किसने लगायीं,नाम तुमसे क्या कहें।बिक रहे हैं कौड़ियों के,दाम तुमसे क्या कहें॥आज का जो फ़लसफ़ा है,आज ही तो ख़त्म है।कल ना जाने क्या रहे,अंजाम तुमसे क्या कहें॥आजकल हर कोई अपनी,धुन में ही मशगूल है।वक़्त का जो है मुझे,पैगाम तुमसे क्या कहें॥पीठ के पीछे तो हर कोई,अलग ही सोचता है।चल रहा जो आज,क़त्ल-ए-आम तुमसे क्या कहें॥मैं हर घड़ी खोया रहूँ,जिस नाम में वह दूर है।चल रहा है किस क़दर,हर काम तुमसे क्या कहें॥आज मयखाना भी महफ़िल से,जुदा-सा लग रहा है।फ़ीका मुझको लग रहा,हर जाम तुमसे क्या कहें॥‘भोर’ को आँखें दिखाता,ये ज़माना चल रहा है।हम तो यूँ ही हो रहे,बदनाम तुमसे क्या कहें॥©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’For more poems of me click here.Or goto www.bhorabhivyakti.tk
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bhut sundar rachana prashant ji…………………………
बहुत-बहुत आभार मधु जी
Ati sundar……………
प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद…
ati uttam sir……………
यूँ ही मेरा मनोबल बढ़ाते रहिये, धन्यवाद…!
sundar…………………..
आपके समय हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद…