मैं आहत होती हूं बेटियों पर जुल्म समाचार सेअपने गैरो से जुझने औऱ होते दो चार सेमैं आहत होती हूं ग ऊ पे अत्याचार सेहोते दुर्दशा से और पड़ते बीमार सेमैं आहत होती हूं पिल्ले की चित्कार सेकराहते पीड़ा से दर्द भरे पुकार से मैं आहत होती हूं पक्षी के क्रंदन सेघोंसला उजड़ने से उनके मौन रुदन सेमैं आहत होती हूं फैले कहीं भी कचरे सेदूसरों पर थोपने से होते हुए झगड़े सेमैं आहत होती हूं व्यर्थ बहते पानी से घोर लापरवाही से न होते निगरानी सेमैं आहत होती हूं तेज वाहन रफ्तार सेहोते हुए टक्कर से मौत के कगार सेमैं आहत होती हूं बाहर जाते शौच सेगुटखा चबाने से थूकते बेखौफ सेमधु तिवारी
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Very nice……………..सुंदर व्यंगात्मक रचना…………………………..
thank you sir……………………………….
maanveey samvednaaon se paripoorn or utaam vyavhaar kee seekh deti sundar rachnaa madhu ji ….
thank you sir…..
……………
Very Nice & Beautiful…. MAdhu Ji…आपका चिंतन यथार्थ से परिपूर्ण है ….यह संवेदना प्रत्येक मानव जन के ह्रदय में समाहित हो जाये यक़ीनन जमीन पर स्वर्ग बन जाये !
ha sir…
…thank you
Bahut khubsurt bhavon ka sanyojan Madhu ji.
thank you meena ji…………………………
Bahut hi sundar vichar prakat kiye hai aapne ……. Beautiful
thank you meena ji…………………………
sorry… thanks kajal ji………..
Very nice Madhuji…..
thank you anu ji…………………………………….
har insaan ka aahat hona utna hi jruri hain jitna aap ho rahe ho…..
nice poem MADHU MAM….
bhut bhut sukriya nivedita ji meri bhavnaon ko smjhne ke liye…
Madhuji……हर किसी के लिए….हर किसी की तरफ से….लिखी रचना है…..लाजवाब….आपकी संवेदना हर दिल तक पहुंचे और असर हो……तथास्तु….
thank you sharma sir……………………………………….