गूँज उठी है धरती मेरे प्यारे हिंदुस्तान कीनिकल पड़ी है रैली राजनीति के शैतान कीउठ रहा है अँधा धुआँ चलती सर्द हवाओं सेरचा जा रहा नया षड्यंत्र खेलने को भावनाओं सेअकड़ थी जिस गर्दन में उसमे भी झुकाव आ गयालगता है देश में फिर से चुनाव आ गयाकल तक जो भूखा था वो भी आज भरपेट सोया हैदेख के दरिंदों की करतूतों को दिल मेरा भी रोया हैदेश को लूटा जीवन भर आज देश भलाई में तन रहे हैअपाहिज किया है जिन लोगों ने अब वो सहारा बन रहे हैराजनीति के गलियारे में कैसा घुमाव आ गयालगता है देश में फिर से चुनाव आ गयाहे ईश्वर तेरी मर्जी के बिन इस दुनिया में कुछ भी न हुआ हैलेकिन इन दरिंदों की दरिया दिली ने मेरे आक्रोश को छुआ हैमेरे देश पर फिर से काले बादल का साया हैदेश की कुंडली में राहु रूपी राजनेता की छाया हैकविराज तेरे शहर में ये कैसा बदलाव आ गयालगता है देश में फिर से चुनाव आ गयानोट- यह कविता सभी प्रकार के राजनेताओं के लिये नही है सिर्फ उन भृष्टाचारियों के लिए है जो देश बर्बादी में तने हुए है ।
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sundar bhaav hain……..
bhav ke lay ka sundar talmelhe manuraj ji…
lovely creation ………….!