तृषित कारवां ,पंकिल सरुवरप्यास बुझाना आसान नहीमुश्किल सा है ।
तपती धूप में , गर्म रेत परनंगे पैरों का सफर आसान नहीमुश्किल सा है ।
बँधी आँखें , दूरस्थ मंजिललक्ष्य भेदना आसान नहीमुश्किल सा है ।
निर्गुण ईश भक्ति,ज्यों गूंगे का सा गुड़स्वाद बताना आसान नहीमुश्किल सा है ।
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“मीना भारद्वाज”
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Behtreen Meena Ji ……….
Thank you so much Shishir ji .
Meenaji…..आपके विचार…सोच…शब्दों को पिरोने का अंदाज़…..लाजवाब है……हाँ अंतिम पद में ‘मुश्किल सा’ जो है वह तो मुश्किल न हो के असंभव है….वो अवस्था को कोई नहीं बता सकता…
Thank you Sharma ji , त्रुटि पर आप का ध्यान गया । लिखते समय ये ख्याल भी मन में आया था कि सही नही है
फिर सोचा विज्ञान ने इतनी तरक्की की है कभी ऐसा भी संभव हो जाए कि गूंगा व्यक्ति बोलने लग जाए. खैर… , ये खाली दिमाग की खुराफाते हैंं आप को कोई उपयुक्त उपमान ध्यान में आए तो जरुर बताइगा . एक बार पुनः आभार .
Meenaji….गूंगा तो बोल सकता है…ईश किरपा से भी और विज्ञान की किरपा से भी…मेरा आशय ईश भक्ति के स्वाद का था…जो पद का मूल भाव है…आपकी भावनाओं के आगे नतमस्तक हूँ…अन्यथा न लें…
Sharma ji , आप जैसे गुणी जनों से सीखने को मिलता है . “अन्यथा”का भाव वहाँ हो ही नही सकता .
Awesome…………………….what a beautiful poem ?
Thanks a lot Vijay ji .
bhut khoob meena ji……behtrin…………..
Hardik dhanyawaad Madhu ji .
superb MEEAN Ji………………really Speechless…………..nice one in your creation !!
Heartily thanks Nivatiya ji, for your encouraging words.
Bahut hi khubsurat…… Kabiley tarif mina ji
Thank you so much Kajal ji .
बेहतरीन रचना मैम…………
Thanks a lot Alka ji.