मेरे ज़हन-ओ-दिल में छुपे रहते हो….न जाने क्या क्या करते रहते हो….रात को नींद नहीं आती….दिन में भटकाते रहते हो…..हसीं मेरी अफ़साना बन गयी……मुस्कुराके बातें जब तुम किया करते हो….कदम भटकने लगते हैं मेरे…..निगाह जब तुम फेर लिए करते हो….सपने सच होने लगते हैं मेरे “बब्बू”….बेचैन हो जब तुम मुझे ढूँढा करते हो…..\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)…
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bahut khoob. Kaash vo vaastav me aise hon.
बहुत बहुत आभार आपका….Madhukarji……
Bahut khoob…….., Ati sundar ………., Awesome………..,
बहुत बहुत आभार आपका….Meenaji….
Jin khoja tin paaiyan gahare paani paith…………Ati sunder.
बहुत बहुत आभार आपका….vijayji….
lajwab sir……..bahut hi badiya…….
बहुत बहुत आभार आपका…Maniji…..
Beautiful Babbu Ji…………….बहुत खूबसूरत बब्बू जी ……………….प्रथम पद के अंतिम चरण में कुछ उलझन सी प्रतीत हुई शायद समझने में असमर्थ रहा हूँ…. !! एक और शब्द पर जाऊंगा की “ज़ेहन-ओ-दिल” में से “जहन” या “दिल” एक ही पर्याप्त है क्योकि दोनों का आशय एक ही है !!
तहदिल आभार आपका ……आप सही कहते हैं….ज़हन-ओ-दिल तरन्नुम के लिए बस रखा है…हा हा हा….अंतिम पंक्ति हमने बदल दी है सर….
Bahut hi behtarin……………
बहुत बहुत आभार आपका…..kaajalji….