ज़िंदा रहा होगा इंसान कभी…जिसकी लाश काँधे पे उठा शमशान जा रहे थे सभी…घर वाले…रिश्तेदार…दोस्त…साथ थे सभी….उनमें से किसी के साथ…मरने वाले का बचपन से ही नाता रहा होगा…पर आज वो प्राण जाने के बाद…सिर्फ एक लाश है…मुर्दा…और मुर्दे को साथ रखने की इजाज़त नहीं है….कानूनन…सामाजिक…धार्मिक….हर तरह से…घर में रहने की इजाज़त नहीं है….मुर्दा या लाश उसी को कहते हैं…जिसमें अब कोई हलचल नहीं हो सकती…मतलब कोई भाव नहीं….न दुःख के न सुख के…उसको कुछ फर्क नहीं पड़ता…कोई क्या कर रहा…जी रहा या मर रहा…यही है मुर्दे की पहचान….फिर जो सरेआम किसी को बीच चौराहे पे…मार देता है…किसी की इज्जत तार तार कर देता है…जो जन्म से पहले ही किसी बच्ची को क़त्ल कर देता है…मारने वाला..साथ देने वाला…और देख कर पत्थर बनने वाला…किसी में भाव नहीं उठता…क्या हैं वो…मुर्दा हैं तो उनके साथ मुर्दों जैसा सलूक क्यूँ नहीं….क्यूँ मुर्दे की पहचान सिर्फ प्राण जाने से है….क्यूँ…..2.ढो रहे थे काँधे पे रो रहे थे सभी….लाश उसकी ज़िंदा रहा था जो कभी…थे संगी सखा कुछ बचपन के..रिश्ते में…घर के लोग..रो रहे सभी…प्राण गए तो मर गया ज़िंदा था जो अभी अभी…ज़िंदा था तो रिश्ता था मुर्दा है तो कुछ नहीं…है मुर्दे की पहचान यही भाव जिसमें नहीं कोई…घर…समाज…धर्म…क़ानून सब पराये हो जाते हैं…घर में रहने की इजाज़त नहीं…शमशान ले जाते हैं…मुर्दे की है पहचान यही….ज़िंदा हैं तो भाव हैं…मर गया कोई सुख दुःख नहीं…मुर्दे की पहचान यही….बीच चौराहे पे हुआ क़त्ल सब ने देखा पर नहीं असर…कोख में बच्ची क़त्ल, दिल किसी में रहम नहीं…तार तार हुई अस्मत, दिन दहाड़े एक नारी की…चीत्कार सुनी अनसुनी रही दिल में दर्द की कमी रही…पत्थर दिल बन रह गए सभी, आँखों में थी नमी नहीं…शमशान बना है जब सारा शहर जिसमें मुर्दों की कमी नहीं…फिर क्यूँ मुर्दा है सिर्फ वही जिसके प्राण बचे नहीं….क्या मुर्दे की पहचान यही….\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)…..
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sahi kaha sir wo bhi bhut sahi tarika se…………..
बहुत बहुत आभार आपका….Madhuji….
Sharma ji बहुत सुन्दर तरीके से भ्रमित मानसिकता को समझाने की प्रेरणा देती प्रेरक रचना ……, अति सुन्दर…………,
बहुत बहुत आभार आपका….Meenaji……
cowards are really dead people. this has come out so very well. Unfortunately today’s Inidia is full of them.
आप सही कहते हैं….बहुत बहुत आभार आपका….Madhukarji…
SO nice BABBU JI………….सत्य कहा आपने आज यही देखने को मिलता है ….. इंसानी संवेदना निर्जीव हो चुकी है ………..वर्तमान परिपेक्ष्य पर गहरा कटाक्ष करती … आत्मचिंतन के बोध को विवश करती बेहद उम्दा रचनात्मकता !!
बहुत बहुत आभार आपका…..Nivatiyaji…
Ati sunder………………………………
बहुत बहुत आभार आपका…Vijayji…….
Nice…… दिल को छू जाने वाले भाव…. बहुत ही सुंदर ।
बहुत बहुत आभार आपका…Kaajalji…