आकर तितलियां मेरी गालों पे बैठने लगीं हैं।झुर्रियां का फेरा समेटने लगी हैं।कुछ मधुकर मेरे कानों को गीत सुनाने लगे हैं।ये मेंढ़क भी मेरी चौखट पर टरटराने लगे हैं।मुस्कराता रहता हूँ मैं हाथ फेर कर खरगोश पर,मदहोशी में रहकर भी रहता है होश पर,जुगनू भी अब मुझको रास्ता दिखने लगे हैं।वो आखों के रास्ते से मेरे दिल में आने लगे हैं।
शाम हो कर भी रातों में उजाला टिका हैं,आज कोई कीमती हीरा बेमोल बिका है,जड़ लिया हैं चांदनी ने मुझे अपनी घन अलकों में,बारिश-सा बरस रहा हूं छप्पर-सी पलकों में,डूब रहा है ये सूरज भी सागर में अब ख़ुशी से,कर रहा है स्वागत अब चंद्रमा का हँसी से,सन्नाटे भी आवृत्ति को सुनाने लगे हैं,वो आँखों के रास्ते से मेरे दिल में आने लगे हैं।
छलछला रही है सरिता पत्थरों पे गिरके भी,जगमगा रही है आस्था, प्रेम के दीपकों में जलके भी,ये बादल भी अब लंगाड़े अब सुनाने लगे हैं।ये हांथी भी चीखने-चिंघाड़ने लगे हैं।हवा का झोंक भी अब लौ को लय देने लगा है।बगुला भी सारसों से कुछ कहने लगा है,अश्क़ बारिश बनकर धरती में सारे सामने लगे हैं।वो आँखों के रास्तों से मेरे दिल में आने लगे हैं।
by prem kumar
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Beautiful………………………..!!
Beautifully written……..
bahut sundar……pahle bhi post ki hai aapne yeh…………