प्रिये अब तुम वापस आ जाओप्रिये अब तुम वापस आ जाओरूठ चुकी अब बहुत तुम मुझसे नाराजी को ख़त्म करोसूनी पड़ी है बाहें मेरी तुम मुझ पर एहसान करोसिमट रहा है मेरा दीपक चलती तेज हवाओं मेंजलता रहे ये दीपक मेरा तुम प्रेरणा स्रोत बन जाओप्रिये अब तुम वापस आ जाओमन मेरा बहुत चंचल है आवारा एक बादल हैनजर न लग जाये किसी की तू ही मेरा काजल हैदुश्मन दिखते है मुझको सब कोई न प्यारा लगता हैप्यार सकूँ में बाट सभी को इतना प्यार तुम दे जाओप्रिये अब तुम वापस आ जाओआगे बढ़ने की कोशिश करता हूँ तेरी याद आ जाती हैतेरे साथ बिताये पलों की तसवीरें छा जाती हैमेरे भविष्य तुम्हारे हाथों तुम ही हो इसकी निर्णायकमेरी सफलता में साथी तुम ऐसा वचन तुम दे जाओप्रिये अब तुम वापस आ जाओप्यार में कमीं न होगी कभी भी मैं तुमको देता हूँ वचनजो भी तुमको कष्ट मिलेंगे उनको भी सेहता हूँ सजनतनहा न होगी ज़िन्दगी में ऐसा मेरा साथ हैतुम तो बस आकर के मेरी कश्ती पार लगा जाओप्रिये अब तुम वापस आ जाओकवि – मनुराज वार्ष्णेय
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Bhaav sundar hain…..lai…shabd sanyojan ki kami hai….
Bahut khub………………………………..