मोहब्बत में मेरे दिल को ये कैसी बेतबारी है…सुकूत-ऐ-मर्ग तारी है, सबसे राज़दारी है…(खामोशी मौत सी छाई है, सबसे राज़दारी है)ये नीला आसमान खूँ रंग हो रहा आज क्यूँ है…सफ़ेद खूँ हुआ इंसान, इसपे लालाज़ारी है…गलत थी राह या के मंज़िल जुदा मेरी…था कारवां पहले अब अकेले रहगुज़ारी है…सिलसिला-ऐ-इश्क़ भी कहाँ कभी खत्म होता है…बिनाई रही नहीं, दिल में तेरा दीदार जारी है…न देखा मुड़ के मैंने, न सोचा तुमने कभी “बब्बू”…न भूले तुम न भूला मैं ये रिश्ता यूं ही जारी है…\/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)सुकूत-ऐ-मर्ग = मौत सा सन्नाटातारी = होनाबिनाई = आँखों की रौशनी/विज़न
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Sundar rachna Sharmaji….
बहुत बहुत आभार आपका….Anuji………
Bahut sundar rachana Sharma ji .
बहुत बहुत आभार आपका….Meenaji….Vote karne ka shukriya… hahahaha…..
Very Nice …..बहुत खूबसूरत बब्बू जी उर्दू शब्दो का सार्थक पुयोग किया है आपने ……….अतिसुन्दर !! तीसरे शेर में काफिया मिलान के लिए उचित शब्द प्रयोग किया जा सकता है !
आप सही कहते हैं….हमने बदल दिया है….तहदिल आभार आपका…प्रतिकिर्या का…वोट का….
Bahut khoob andaaz e bayaan.
बहुत बहुत आभार आपका….Madhukarji…….