वो तेरी शर्म और हया और वो तेरा मुझ पर करम मैं नहीँ भूला हूँ कुछ भी पर तुमने बदला है धरमयाद कर तू वो समय इस पहलू में तुम चहका किये क्या हुआ जो भूल बैठे उल्फ़त की तुम सारी कसमजीवन की लम्बी राहों में जद्दोजहद तो बड़ी आम हैहर ईक ग़म भूला था मैं जो रुख पर गिरी साँसें नरमकभी मिलते रहे खिलते रहे और गुनगुनाते भी रहे तेरे दिल में हम आबाद हैं अब मिट गए सारे भरमआसां नहीँ होता है मधुकर उन रिश्तों को पूरा भूलना दूरी ना हो जब बीच में और बाकी ना हो कोई शरमशिशिर मधुकर
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bahut khoobsoorat……….
Hearty thanks Babbu Ji ………..
Very nice……
Thanks a lot Anu ……….
Atyant sundar gazal Shishir ji .
Meena Ji I appreciate your words.
Beautiful………………………..!!
Hearty thanks Nivatiya ji ……..