तेरी ख़ातिर आहिस्ता,शायद क़ामिल हो जाऊँगा।या शायद बिखरा-बिखरा,सब में शामिल हो जाऊँगा॥शमा पिघलती जाती है,जब वो यादों में आती है।शायद सम्मुख आएगी,जब मैं आमिल हो जाऊँगा॥पेशानी पर शिकन बढ़ाती,जब वो बातें करती है।नहीं पता कब होश में आऊँ,कब क़ाहिल हो जाऊँगा॥उसकी नज़रें दर-किनार,मेरी नज़रों को कर देती हैं।सारी रंजिश दूर हटाकर,खुद साहिल हो जाऊँगा॥वह तितर-बितर मेरे मन की,हर ख़्वाहिश को कर देती है।कदम बढ़ा उसकी राहों में,मैं राहिल हो जाऊँगा॥हर एक गुज़ारिश उसकी,अपनी किस्मत में लिख देता हूँ।तक़दीर मेरी भी गूँज उठेगी,जब क़ाबिल हो जाऊँगा॥शब में आ कर ख़्वाबों पर,अपना कब्ज़ा कर लेती है।‘भोर’ तलक मैं आहिस्ता।शायद ज़ामिल हो जाऊँगा॥©प्रभात सिंह राणा ‘भोर’Words- क़ामिल- Complete शमा – Candle आमिल- Effective पेशानी- Forehead क़ाहिल- Lazy साहिल- Shore/River bank राहिल- Traveler शब – Night ज़ामिल- Happyto read more from me click here
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Bhor sahab…….बहुत अच्छी ‘भोर’ खुशनसीबी की…बेहद खूबसूरत……….
बहुत-बहुत धन्यवाद। यूँ ही साथ देते रहिए। मेरी अन्य रचनाओँ के लिए आप मेरे blog http://www.bhorabhivyakti.tk पर जा सकते हैँ।
Bahut sundar……
आभार…, मनोबल बढ़ाते रहिए, अन्य रचनाओं हेतु आप मेरे blog http://www.bhorabhivyakti.tk पर जा सकतीं हैं। पुनः धन्यवाद!
lovely……………………….!!
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद! यूँ ही मनोबल बढ़ाते रहिए, अन्य रचनाओं हेतु आप मेरे blog http://www.bhorabhivyakti.tk पर जा सकते हैं।