आज मैंने देखा है-एक कली मुरझाई सीकैद स्वर्ण पिंजरे मेंथोड़ी क्षुब्ध थोड़ी शरमाई सी।आज मैंने देखा है-अंजन भरे लोचन सेस्वप्नाश्रु झरते हैंअधरों पर मुस्कान लाती हैवह बुलबुल घबराई सी।आज मैंने देखा है-उत्कण्ठिता के नयùनों कोदिवा-स्वप्न में खोई सीरोती दीप-राग में- बन प्रिय-पराई सी।आज मैंने देखा है-वह मीठी कूक सेदिवस को राह दिखाती-भटकती वह अंतःवन मेंमृगलोचनी भरमाई सी।द्वारा- ऋतुराज
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ati sundar rituraj ji………..
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Beautiful write ……..Good work
Sundar…………….
Beautiful poem………………………………….!!
“मुझको-मेरा-हक-दो” यह रचना प्रतियोगिता में शामिल है अत आप और आप के सभी साथियो से नम्र निवेदन है की इस रचना के लिंक http://sahityapedia.com/मुझको-मेरा-हक-दो-70025 पर जाकर अपना वोट दे…!! वोटिंग प्रक्रिया के लिए रचना के नीचे वोट का बटन है उस पर क्लीक करे और कोई विकल्प आये तो उसे पूरा करे ।।
आपक बहुत बहुत धन्यवाद ??
ज्ञात तहे की लाइक नही लिंक पर जाकर रचना के नीचे वोट के बटन द्वारा वोटिंग करनी है आपके सहयोग का आभारी ??
अपने सभी साथियो से भी वोट कराये आपके अपने सम्मान के लिए??
Vote pic pe nhi karna hai jo link hai use click karo site open hogi jis par poem likhi hai uske neeche vote ka button hai use click kre jo option aaye use complete kre ..vote add ho jayega????
Very nice………………………………