मत छीनो ये बचपनन मालूम कब बीत जायेगाभूल गए है खेलकूदन मालूम कब खेल पायेगाफस गया है इछाओ के भवर मेंन मालूम कब निकल पायेगामत थोपो हसरते उनके कंधो परथक गया है यह बचपनन मालूम कब सम्भल पायेगायदि ये बचपन बिगड़ गयान मालूम कब सवर पायेगाकहा चला गया है बचपनकहाँ आ गए हैंयह युग है टेक्नोलॉजी काइन्टरनेट ने किया अचंभितमच गया कोहरामबच्चे-युवा हुए दीवानेये आगाज है नए विश्व काबन गए है गुलामवे अनजान है इस विश्व सेन जाने कब सेरोक लो उन्हेंथामलो उनका हाथये इंटरनेट कहीं ले न डूबे…!कहाँ आ गए हैंक्यों भूल गया रिश्ते-नातेन मालूम कब समझेगाक्यों भाग रहा है पैसे के पीछेन मालूम इस अंधी दौड़ मेबीत गई ज़िंदगी कमाने मेंन आएगा पैसा कामअभी भी वक्त है तू समलजाकही ये तुझे निगल ना जायेकहाँ आ गए हैंनिकले है सफ़र पर कब सेना मंजिल का ना घर का पता हैन मालूम यह सफर कब थमेगाक्यों भाग रहा है बंद आखो सेक्यों है विश्वास स्वयं परक्यों भुल जाता है स्व कोन मालूम कब जान पायेगाभय है जैसे मौत कान मालूम कब थम जायेकहाँ से सफ़र शरू हुआ थाकहाँ आ गए हैं
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sahi kaha hai aapne………ati sundar……
thk sir
plz read both poem
मकर संक्रांति
उडी पतंगे
Nice thought….Kahi kahi typing error lag raha..jisse sentence ka meaning change ho raha hai…as for example…..I think ‘समल’ ke place pe ‘ सम्भल, hoga…
thk madam
plz read both poem
मकर संक्रांति
उडी पतंगे
bhut sundar bhav hai sumit ji .typing ke mamle me mai anu ji se sahmat hu.
thk madam, i will try next time to check typing mistake
plz read both poem
मकर संक्रांति
उडी पतंगे
very nice thought with lovely words.
thk sir
plz read both poem
मकर संक्रांति
उडी पतंगे