**********हैरां हूं***********
ऐ वक्त ! तेरे बदले हुए दस्तूर पे हैरां हूं,
जो जख्म हुआ नासूर उसी नासूर पे हैरां हूं l
अब भी भटकता है तेरे कूचे की हवाओं में,
मैं तो फक़त अपने दिल-ए-मजबूर पे हैरां हूं l
उम्रभर रौशनी बांटी है खुद मोहताज़ रहा है,
मैं मुद्दत से अपनी हस्ती-ए-बेनूर पे हैरां हूं l
मुझको ला छोड़ दिया है किसी चौराहे पर,
ज़िन्दगी मैं तो दरीचा-ए-मगरूर पे हैरां हूं l
मैने “सागर” को तहज़ीब में खामोश पढा है लेकिन,
ऐ नयी कश्तियों ! मैं तुम्हारे गुरूर पे हैरां हूं ll
-Er. Anand Sagar Pandey,”अनन्य देवरिया”
आप सभी मित्रों की रचनायें पढकर आनन्दित होता रहता हूं l
कई बार कमेंट देने का प्रयास किया मगर कुछ error दे रहा है l
खैर! पढने का सौभाग्य प्राप्त हो पाता है इसमें भी संतुष्ट हूं l
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bhut khoob dehariya ji……………………
Ati sundar ……..
Anandji….laajwaab……..aap apne comments jaise main likh raha waise hinglish mein dekhein likh ke ya pahle english mein naam ya kuch bhi fir hindi mein लिखें जैसे मैंने लिखा है….देखो काम बन जाए तो…hahahahahaha….mixing ka jamaana hai…..
Beautiful poem..Anand ji….
nice job………………!
Laajawaab……………………..Ati Sunder