चल अम्बर अम्बर हो लें..धरती की छाती खोलें..ख्वाबों के बीज निकालें..इन उम्मीदों में बो लें.. सागर की सतही बोलो..कब शांत रहा करती है..हो नाव किनारे जब तक..आक्रांत रहा करती है..चल नाव उतारें इसमें..इन लहरों के संग हो लें..ख्वाबों के बीज निकालें..इन उम्मीदों में बो लें.. पुरुषार्थ पराक्रम जैसा..सरताज बना देता है..पत्थर की पलटकर काया..पुखराज बना देता है..हो आज पराक्रम ऐसा..तकदीर तराजू तौलें..ख्वाबों के बीज निकालें..इन उम्मीदों में बो लें.. धरती की तपती देही..राहों में शूल सुशज्जित..हो तेरी हठ के आगे..सब लज्जित लज्जित लज्जित..संचरित प्राण हो उसमें..जो तेरी नब्ज टटोलें..ख्वाबों के बीज निकालें..इन उम्मीदों में बो लें..
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sundar git sonit ji……………………..
thank you madhu ji
nice बहुत सुंदर सर जी
एक आत्मविश्वास जगाने वाला गीत
thank you Krishna ji…………..
Sonitji……..बहुत ही सुन्दर……..बहुत दिनों बाद आये हैं आप……आशा है सब कुशल मंगल है…नए साल की शुभकामनायें आपको….
bas thodi vyastata ke chalte nhi aa paya sir. bahut achcha lga ki aapko yaad hoon mai. aapke is apnepan ne dil jeet liya 🙂
atyant khoobsoorat rachnaa ……….
dhanyvaad shishir ji…………
Beautiful creation …………….!!
dhanyvaad D.K. sir…………….